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Author

माही सिंह

छात्रा

VIII

संस्कृतभाषायाः श्लोक

Published on June, 19 2021

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुम व्यथा !
सुतप्तमपि पानींय पुनर्गच्छति शीतताम् !!

भावार्थ-
किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता है ठीक उसी तरह जैसे ठण्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में पुनः ठंडा हो जाता हैं

संस्कृतभाषायाः महत्वम्

संस्कृतभाषाः-
भारतदेशः यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी भव्यभावोदायिनी शब्द-सन्दोह-प्रसविनी सुरभारती।
विद्यामानेषु निखिलेश्वपि वाऽ.येषु अस्याः वाडग्ंय सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्न च वर्तते। इयमेव भाषा
संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति। अस्मांक रामायण-महाभारताचैतिहासिकग्रन्थाः चत्वारो वेदाः सर्वाः
उपनिषदः अष्टादशपुराणानि अन्यानि च महानाप्यदिनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति। सर्वासु
भाषासु संस्कृतभाषा प्राचीनतमा अस्ति। इंय भाषा देववाण्ी, गीर्वाणवाणी सुखाणीश्त्यविनामभिः
सुविद्धयता। सा न कठिन अपितु सरला एव। संस्कृतसाहित्यस्य आदिकविः वाल्मीकि, महर्षिव्यास,
कविकुलगुरू, कालिदास अन्ये च आस-आरवि-भवभूत्यादयो महाकवयःस्वीकीयैःग्रन्थरत्नैः अथापि
पाठकानां अपि विराजते। संस्कृतस्य साहित्यं सुरस, व्याकरणञ्च सुनिश्तम्।

अनुवाद-
धन्य हैं यह भारत देश जहाँ जनमानस को पावन (पवित्र) करने वाली अच्छे भवो को उत्पन्न करने वाली
शब्द-ष्सकूह को जनने वाली देववाणी (सस्ं कृत) शोभायमान है। विद्यमान समस्त साहित्यों में इसका साहित्य
सर्वश्रेष्ठ और सुसम्पन्न है। यही भाषा संसार में संस्कृत नाम से प्रसिद्ध है। इसी भाषा मे हमारे ‘रामायण ‘,
‘महाभारत‘ आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारो वेद, समस्त उपनिषद् अठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य, नाटक
आदि लिखे गए हैं। संस्कृत भाषा एक बहुत प्राचीन भाषा है। आज भी संस्कृत साहित्य के आदिकवि
वाल्मीकि महर्षि व्यास, कविकुलगुरू, कालिदास तथा भास भारवि भवभूति आदि अन्य महर्षि अपने गन्थ-रत्नो 
के कारण पाठको के हृदय में विराज रहे हैं।